(प्रेस क्लब चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, नतीजे के दिन की एक घटना जो वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र रंजन के साथ घटी)
अब से तकरीबन एक घंटा पहले मुझे ऐसा अनुभव हुआ, जिसे अभी भी मैं अपने गले नहीं उतार पा रहा हूं।
प्रेस क्लब (नई दिल्ली) में चुनाव की सरगर्मी है। शनिवार को मतदान हुआ। आज दिन से मतगणना चल रही थी। इसी से संबंधित जानकारी पाने की दिलचस्पी लिए मैं साढ़े आठ बजे के आसपास वहां पहुंचा। मेरे साथ मेरा बेटा भी था (जो खुद एक पत्रकार है। 2012 से लगभग तीन साल तक अंग्रेजी अखबार द हिंदू में काम करने के बाद मास्टर्स करने Loughborough University गया और कुछ रोज पहले ही लौटा है)। उसने शॉर्ट्स पहन रखी थी। गेट पर उसे रोक दिया गया। बताया गया कि शॉर्ट्स पहन कर अंदर जाने पर रोक है। मुझे यकीन नहीं हुआ। तब मैंने फोन कर एक क्लब के निवर्तमान पदाधिकारी से बात की। उन्होंने पुष्टि की कि ऐसा नियम है।
28 वर्ष की अपनी पत्रकारिता में मैंने अनगिनत बार ऐसी खबरों को लिखने-संपादित करने का काम किया है, जिसमें किसी कॉलेज या संस्था में ड्रेस कोड लागू करने के प्रयासों की निंदा की गई। उस पर गंभीर सवाल उठाए गए। ऐसे मीडिया विमर्श के कारण ही ड्रेस कोड शब्द नकारात्मक अर्थ अथवा ध्वनि वाला हो गया है। ड्रेस कोड लागू करने के निर्णयों को अक्सर “तालिबानी” बताया जाता है। उन्हें निजी स्वतंत्रता और संवैधानिक भावना के विरुद्ध बताया गया है। भारतीय मीडिया खान-पान, पहनावा, रिश्तों, मनोरंजन आदि में व्यक्तिगत चयन की स्वतंत्रता के झंडाबरदार के रूप में सामने आती रही है। इसीलिए यह सोचना भी कठिन लगता है कि खुद पत्रकारों के अपने क्लब में ऐसा ड्रेस कोड लागू है!
ये बातें गौरतलब हैं- क्लब एक ऐसी जगह है, जहां लोग मिलने-जुलने और मनोरंजन के लिए आते हैँ। प्रेस क्लब में व्यवस्था है कि लोग सपरिवार आ सकते हैँ। वर्तमान नियम के मुताबिक कभी कोई परिवार वहां आए और उसका कोई युवा सदस्य शॉर्ट्स पहने हो- तो उसे वहां से बाहर कर दिया जाएगा। उस परिवार को होने वाले तजुर्बे का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।
सोचना कठिन है कि ऐसा नियम कैसे बना? क्यों बना? क्यों अब तक इस पर किसी का ध्यान नहीं गया? यह भी ध्यान देने का पहलू है कि अक्सर प्रेस क्लब का नेतृत्व अथवा प्रबंधन उन पत्रकारों के हाथ में रहा है, जिनकी वामपंथी छवि है। उन्होंने इस नियम को बर्दाश्त किया, यह दुखद है।
अब नए पदाधिकारी प्रेस क्लब का प्रबंधन संभालने जा रहे हैं। क्या वे इस नियम से जुड़ी विसंगितियों पर ध्यान देंगे? क्या ये उम्मीद की जाए कि नई समिति इस नियम को अविलंब खत्म कर देगी?