दिल्ली में OROP के मुद्दे पर एक पूर्व फौजी रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या से कई सवाल खड़े हुए हैँ। बजाए इन सवालों पर गौर किए बुधवार को दिन भर इस पर राजनीति होती रही । कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में इसका क्रेडिट लेने की होड़ लगी रही। पहले मनीष सिसौदिया फिर राहुल गांधी और आखिर में अरविंद केजरीवाल। सब अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते नजर आए। लेकिन इस मामले में सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदाराना रवैया रहा दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार का। अगर हम साफ शब्दों में कहें तो बुधवार को दिल्ली पुलिस की अपरिपक्वता ने सेल्फ गोल का मौका दिया। जब एक बार यह गोल हो गया तो विरोधी खिलाड़ी सारे समय सरकार के गोलपोस्ट के करीब ही मंडराते नजर आए और गोल दागते रहे।
OROP मामले में कुछ मुद्दों पर सेना के कुछ संगठनों का विरोध है। ये संगठन जंतर-मंतर पर लगातार धरना दे रहे हैं। इसी धरने पर बैठे एक पूर्व सैनिक ने कल जहर खाकर आत्महत्या कर ली। मामला जितना सीधा दिख रहा है दरअसल उतना है नहीँ। धरने से उठकर एक पूर्व फौजी रक्षा मंत्री से िमलने के लिए चल देता है। साथ में कुछ और पूर्व फौजी भी हैं, इतना ही नहीं मानवाधिकार का कोई कार्यकर्ता है राजकुमार वो भी साथ में है। रास्ते में वो शख्स सल्फास की दो-तीन गोलियां खा लेता है, फिर वो अपने बेटे को फोन करता है। बेटा उससे आराम से बात करता है, फोन को रिकॉर्ड करता है और फिर रोने लगता है। जब से रामकिशन ग्रेवाल और उसके बेटे की बातचीत का ऑडियो टेप सामने आया है मामले ने अलग रंग ले लिया है।
इस पूरे मामले को विस्तार से और निष्पक्ष होकर समझने की जरुरत है। कई सवाल हैं।
१) जब रामकिशन ग्रेवाल जंतर-मंतर से रक्षा मंत्री से मिलने के रास्ते में था तो क्या वो कार्यक्रम पहले से निर्धारित था, क्या रक्षा मंत्री से पहले से वक्त मांगा गया था और अगर ऐसा नहीं है तो आपको क्या लगता है अचानक धरना स्थल से उठकर चले आए किसी शख्स से रक्षा मंत्री को क्यों मिलना चाहिए।
२) अगर रक्षा मंत्री के कार्यालय में रामकिशन ग्रेवाल को प्रवेश की अनुमति नहीं मिली तो क्या इतने भर से उस शख्स को सल्फाल की गोलियां खा लेनी चाहिए।
३) जिस ओआरओपी मामले में इस पूर्व फौजी की आत्महत्या की बात की जा रही है उस मामले में उसके खाते में क्या पैसे आए हैं, अगर हां तो कितना ( अभी तक की जानकारी के मुताबिक निर्धारित रकम से महज ५ हजार कम मिले हैं)
४) इस पूर्व फौजी की आर्थिक स्थित क्या इतनी जर्जर है कि वो महज ५ हजार के िलेए आत्महत्या तक को मजबूर हो सकता है। फौजी आत्महत्या का कदम कैसे उठना सकता है, इसकी पड़ताल क्यूं नहीं होनी चाहिए।
५) रामिकशन ग्रेवाल के पहचान पत्र पर सरपंच लिखा है, अगर वो किसी गांव का सरपंच है तो जाहिर है पैसे के लिए आत्महत्या जैसा कदम वो नहीं उठा सकता।
६) रास्ते से जब वो अपने बेटे को फोन करता है तो उसका बेटा इतनी तसल्ली से बात करता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो, कोई भी सामान्य सा व्यक्ति किसी अपने के जहर खाने की खबर पर इतना शांत कैसे रह सकता है, और फिर बाद में उसकी रिकॉर्डिंग सामने आती है
७) क्या रामकिशन ग्रेवाल पहले भी इस तरह की धमकियां देता रहा है जिसकी वजह से उसका बेटा पहले इस मामले को बहुत ही हल्के में ले रहा है।
८) जब ग्रेवाल अपने बेटे से फोन पर बात कर रहा है तो उसके पीछे से कुछ आवाजें आ रही हैं, एक बार तो ऐसा लग रहा है कि जैसे कुछ उसको प्रॉम्ट किया जा रहा है
९) जो लोग ग्रेवाल के साथ थे वो उसे जल्द से जल्द किसी अस्पताल में क्यूं नहीं ले गए
और
१०) जो भी इस मामले में संदिग्ध है उसकी जांच क्यूं नहीं होनी चाहिए।
ये तो वो सवाल हैं जो जिसे हमें आपको समझने की जरुरत है। लेकिन बुधवार को जो राजनैतिक दलों ने समझा वो कुछ दूसरा ही मामला था और उसपर दिल्ली पुलिस का बचकाना रवैया मामले को और बड़ा कर गया। चालीस साल से ज्यादा लंबे समय से अटके ओआरओपी के मसले को मोजूदा केंद की सरकार ने लगभग निपटा दिया। ज्यादातर मांगे मान ली गईं, कुछेक मुद्दों पर विरोध जारी है लेकिन इसी बीच इससे जुड़ी रकम पेंशनर्स के खाते में जमा होने लगी है। ऐसे मौके पर इसी मुद्दे से जुड़े किसी पूर्व फौजी का जहर खा लेना तो मानो विपक्षी पार्टियों को एक हथियार मिल गया। पहले इसका लाभ लेने मनीष सिसौदिया पहुंचे, मामले का लाभ आम आदमी पार्टी को न मिले आनन-फानन में राहुल गांधी कूद गए। दिन भर राहुल गांधी मीिडया की सुर्खियों में रहे और मामले को तूल देता उनका वीडियो बाहर आता रहा। शाम होते होते अरविंद केजरीवाल को लगा कि अकेले राहुल गांधी इस मामले का सारा राजनीतिक फायदा ले जाएंगे तो वो भी अस्पताल निकल पड़ आत्महत्या कर चुके फौजी के परिवार से मिलने।
ये वो नेता हैं जो पिछले दिनों दर्जनों फौजियों के सीमा पर जान गंवाने के बाद उनसे मिलने तो दूर उनका ज़िक्र करना भी उचित नहीं समझे। राहुल गांधी जब सेना पर जान गंवाने फौजियों के बारे में बोला भी तो खून की दलाली का आरोप प्रधानमंत्री पर मढ़ दिया।
बावजूद इसके बुधवार का मामला इससे अलग था। अगर राहुल गांधी या फिर केजरीवाल रामकिशन ग्रेवाल के परिवार से मिल ही लेते तो क्या केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार गिर जाती। उनके परिवार से मिलने के बाद भी वो केंद्र की सरकार को कोसते। शाम में न्यूज चैनलों पर एक खबर भर होती बस। लेकिन उनको मिलने से रोकने का खामियाजा यह हुआ जो खबर महज एक हेडलाइऩ तक सीमित रहती वो दिन भर सुर्खियां बटोरती रही। जैसे जैसे राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की खबरें बाहर आई वैसे वैसे उनको तवज्जो मिलता रहा। न्यूज चैनल ही नहीं सोशल मीडिया पर भी यही चर्चा होती रही और दिल्ली पुलिस की एक छोटी सी भूल भारी पड़ गई। उसपर केंद्रीय मंत्री वी के सिंह का गैरजिम्मेदाराना बयान आग में घी का काम कर गया। किसी भी व्यक्ति की जान गंवाने को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता, वैसे ही किसी भी आत्महत्या को जस्टिफाई नहीं किया जाना चाहिए, साथ ही लोकतंत्र में कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से मिलना चाहता है और दूसरा उससे इंकार नहीं कर रहा तो ऐसे में उसे रोकने को भी जस्टिफाई नहीं किया जा सकता। रही बात केजरीवाल की तो बतौर मुख्यमंत्री धरना देना और गिरफ्तारी देना इनका शगल है इसलिए इसपर समय बरबाद नहीं किया जाना चाहिए।
हां अंत में एक बात जरुर कहूंगा कि नरेंद्र मोदी को इस आत्महत्या की वजह के पीछे की सच्चाई सामने लाने के लिए जांच बिठानी चाहिए साथ ही इसकी भी जांच करानी चाहिए कि दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों ने ऐसे बचकाने फैसले कैसे लिए या फिर किसके कहने पर लिए। हमें तो इसमें भी साजिश की बू आती है।