इशरत जहां का मामला हम सब भूले नहीं है, आतंकी संगठन लश्कर से संबंध रखने वाली इस हसीन आतंकी का एनकाउंटर, उसके बाद उसको फेक एनकाउंटर साबित करने की तथाकथित बुद्धिजीवियों की लगातार कोशिश, 26/11 हादसे के जिम्मेदार डेविड हेडली का कबूलनामा कि इशरत लश्कर की आतंकी थी और मामले को दबाने के लिए चिदंबरम के दस्तखत से जारी दस्तावेज। सब याद होगा । सालों तक तथाकथित मानवाधिकारियों ने हल्ला मचाया कि इशरत का फेक एनकाउंटर हुआ औऱ वो निर्दोष थी। अगले कुछ सालों तक अब फिर वैसा ही मामला उठने वाला है। इशरत के साथ चार आतंकियों को गुजरात पुलिस ने ढेर किया था। इस बार मध्यप्रदेश की पुलिस ने आठ आतंकियों को मार गिराया है। गुजरात में तब बीजेपी की सरकार थी और मध्यप्रदेश में भी बीजेपी की सरकार है। फर्क इतना है कि उस मामले में मारे गए आतंकियों पर खुफिया निगाह थी इस बार यह जेल तोड़कर भागे थे।
दिवाली की रात भोपाल सेंट्रल जेल तोड़ कर भागे सिमी के आठ आतंकियों को मध्य-प्रदेश की पुलिस ने महज नौ घंटे के अंदर ढूंढ कर मार गिराया। जाहिर है बहस तो होगी, सवाल भी खड़े होंगे। किसी हत्यारे को तलाशने में, किसी बलात्कारी को ढूंढने में या फिर किसी गायब छात्र को तलाशने में यही पुलिस महीनों नाकाम रहती है। तो इस मामले में ऐसी तत्परता कहां से आई। यही सारे सवाल अब उठाए जा रहे हैं और सरकार से पूछे जा रहे हैं। इस मामले में न तथाकथित बुद्धिजीवियों को सबसे बड़ी चिंता सता रही है वो यह कि पुलिस ने इतनी तत्परता से इसको कैसे अंजाम दिया। मतलब हम यह मान कर बैठे हैं कि पुलिस के बस का कुछ नहीं। खैर ..
मेरे भी मन में कुछ सवाल हैं, मैंने सोचा लगे हाथ मैं भी पूछ ही लूं । पुलिस की इस कार्रवाई पर या ऐसी किसी भी घटना पर सवाल उठाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों से हैं मेरे यह सवाल ।
1) सवाल उठ रहे हैं कि पुलिस ने इतनी मुस्तैदी से इस काम को अंजाम कैसे दिया, तो क्या एक मामले में पुलिस की मुस्तैदी का ना दिखना इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि पुलिस हमेशा असफल होगी या फिर हम ऐसा चाहते हैं कि हमारी पुलिस असफल हो।
2) अगर आपके व्यक्तिगत किसी मामले में पुलिस से आपको उम्मीद होती है तो क्या आप उसके असफल होने की कामना करते हैँ।
3) आतंकी चाहे वो जेल से भागे हों या फिर किसी बड़ी घटना अंजाम देने की साजिश रचते हों जिससे हमारे सैकड़ों-हजारों बेगूनाह भाई बहनों की जान जाती है तो क्या ऐसे आतंकी को खत्म नहीं हो जाना चाहिए।
4) हम किसी भी एनकाउंटर के बाद अपनी ही पुलिस पर क्यूं सवाल खड़ा करते हैं।
5) न्याय व्यवस्था की खामियों से उपजी लेट-लतीफी के बीच आतंकियों के साथ इस तरह का सलूक राहत नहीं देता ।
6) देश की सीमा पर जवान गंवा रहे हमारे नौजवान, हमारी सुरक्षा में लगी पुलिस फोर्स जब इस आतंकवादियों का निशाना बनते हैं तब आप कहां सोए रहते हैं। आपका मानवाधिकार कहां होता है।
7) जिस हेडकांस्टेबल की इन आतंकियों ने हत्या कर दी उसके परिवार के लिए इन नेताओं और तथाकथित बुद्धिजीवियों के बोल क्यूं नहीं फूटे। एनकाउंटर के बाद ट्वीट करने वाले दिग्विजय सिंह और उनके जैसे दूसरे नेता को क्या ट्वीटर और ऐसी दूसरे सोशल फोरम ने अपनी जान गंवा चुके सिपाही के लिए बोलने-लिखने से रोका था।
8) अगर िकसी मुठभेड़ में मारा गया आतंकी मुसलमान है तो क्या पुलिस इन नेताओं की तुष्टिकरण की वजह से उनको बख्श दिया करे। किसी भी मुस्लिम आतंकी को मार गिराए जाने के पीछे कैसे सिर्फ चुनाव का गणित हो सकता है। जो नेता इस मामले को चुनाव से जोड़ रहे हैं उनका क्या तर्क है या फिर उनकी सारी नीतियां मुस्लिम तुष्टीकरण पर आकर सिमट तो नहीं जाती।
9) जब इस देश में कुछ विदेशी मीडिया संस्थान, कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी किसी प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों को कार्यकर्ता बताते हैं तो उनपर सवाल क्यूं नहीं खड़े होते।
एक आखिरी सवाल जो आज कई तथाकथित बुद्धिजीवियों जो एयरकंडीशन कमरे में बैठ गरीबी उन्मूलन की बात करते हैं। जो दस कदम पैदल चल पाने में सक्षम नहीं हो लेकिन क्रांति की बात करते हैं, ने दिन भर उठाए ।
10) जेल से भागे सिमी के आतंकी रिहायशी इलाके की तरफ क्यूं भागे, बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन की ओर क्यूं नहीं। मेरा सवाल है कि क्या इन आतंकियों से गलती की उम्मीद नहीं, क्या हम यह मान कर चलें कि यह बहुत ही फुलप्रूफ तरीके से ही अपने वारदात को अंजाम देते हैं। ऐसे हास्यास्पद और बचकाने सवाल पूछने वालों को एक ही जवाब दिया जा सकता है कि ये आतंकी गूगल मैप लेकर नहीं निकले थे।
इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वालों को यह मालूम होना चाहिए कि मारे गए आतंकी इतने खूंखार थे कि सुनवाई के लिए जेल से अदालत जाते समय इन्होंने इतना उपद्रव मचाया था कि इनकी सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग से कराई जाने लगी थी। वीिडयो कांफ्रेंसिंग के दौरान ये जजों के साथ बदतमीजी करते थे और इसके लिए इन्हें कई बात चेतावनी दी जा चुकी थी।
इन सबके अलावा एक बार गौर से सोचिए कि अगर यह फरार आतंकी इस देश में किसी 26/11 या फिर संसद हमले जैसी वारदात को अंजाम दे देते तो इनके फरार होने का ठीकरा किसके सिर फूटता। अगर किसी वारदात में कुछ निर्दोंष लोगों की जान चली जाती तो यह मानवाधिकारी किस मुंह से और किससे सवाल करते।
हजारों मासूम और बेगूनाह लोगों को मौत की नींद में जाने से बचाने के लिए इन घोषित आतंकियों का पकड़ा जाना जरुरी था और एनकाउंटर में ये मारे गए तो क्या गलत हुआ और हां अगर यह एनकाउंटर तथाकथित फर्जी एनकाउंटर भी हुआ है तो भी क्या गलत है।