क्या आपको मालूम है कि पिछले सात दिनों से बिहार के हालात नाजुक हैं , लगभग सात जिलों में आग लगी हुयी है, पर जिनके जिम्मे आग बुझाने का दायित्व है वो कहाँ है ,पता नहीं ? पिछले हफ्ते हमारे समाज के दो बड़े त्योहारों के दौरान बिहार में सरकार की नाकामी उजागर हुयी है पर वो इसे स्वीकारने के बजाय इन घटनाओं को कुछ और ही बता कर पल्ला झाड़ रही है। सच तो ये है कि ईमानदारी से उन घटनाओं को रोकने या सुरक्षा की खातिर एहतियातन इंतजाम तक नहीं किये गए और चीख -चीख कर सरकार काम करने की जगह किसी और इंतजाम में लगी है , वो है सियासी भविष्य की चिंता , वोट बटोरने की रणनीति और विरोधी को कैसे नीचे दिखाया जाए इसपर माथापच्ची । हालांकि इन दिनों बिहार के सुशासन बाबू अपनी राष्ट्रीय छवि की डेंटिंग -पेंटिंग में लगे हैं , और उसके लिए दो रास्तों पर चलने की बात कर रहे हैं। उनके एजेंडे में एक रास्ता है शराबबंदी , जिसके दम पर वो एक राष्ट्रनायक बनने का जूनून पाले हुए है। बात यहीं नहीं रूकती , वो तो कई और कदम छलांग लगाकर ये सलाह भी दे रहे हैं कि चीन को परास्त करना है तो शराब बंद कर दो। दूसरा एक और रास्ता उन्होंने अख्तियार किया है , वो है अपने सात निश्चय का रास्ता। चुनाव से पहले बिहारवासियों से जो वादा किया था उसे सात निश्चयो की एक माला बनाई है जिसे पूरा करने की जाप जारी है। पर साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का वातावरण अभी बिहार में जिस हद तक ख़राब हो चुका है उसे किसी पैमाने पर तौलकर बताना उचित नहीं होगा।
अभी जो हालात सूबे का है उस पर एक नजर दौड़ाइए
12 अक्टूबर को भोजपुर जिले के पीरो में ताजिया जुलूस के दौरान दो गुटों में रोड़ेबाजी हो गई। डी एस पी और पुलिस के दो जवान घायल हुए और पुलिस ने हवाई फायरिंग की । 13 अक्टूबर को 6 गाड़ियां जला दी गई। पीरो में पूरे दिन तांडव होता रहा । 14 अक्टूबरको उपद्रवियों ने ट्रेन पर पथराव किया। पुलिस पर पथराव और फायरिंग भी की गयी । ट्रेन में सवार लोगों को लाठी और रॉड से पीटा गया । 15 अक्टूबर इंटरनेट सेवा बंद करने के बाद कुछ दूरसंचार कंपनियों की वायस सेवा भी प्रभावित हुयी । 20 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए हैं।पुलिस ने पूरे क्षेत्र को छावनी में तब्दील कर दिया। हालात अभी भी तनावपूर्ण हैं।
14 अक्टूबर को गोपालगंज में धारा 144 लागू करना पड़ा , इंटरनेट पर रोक लगा दी गयी। मां दुर्गा की मूर्ति को विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था। इसी दौरान जुलूस पर पथराव व फायरिंग की गई। इसके बाद शहर का माहौल तनावग्रस्त हो गया। उपद्रवियों ने दो कारों और तीन बाइकों में आग लगा दी। पथराव में दो पुलिसकर्मी सहित सात लोग घायल हो गए। पूरे जिले में तनाव की स्थिति है। 14 अक्टूबर को शहर में धारा 144 लगानी पड़ी. उग्र लोगों ने 4 बड़े व 5 दो पहिया वाहनों को भी जला दिया। पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में लिया।
12 अक्टूबर से मधेपुरा में तनाव जारी है , मधेपुरा के बिहारीगंज में दो गुटों में भिड़ंत के बाद तनाव बढ़ा । दो गाड़ियों को जला दिया गया । दोनों तरफ से हुए पथराव और चाकूबाजी में 8 लोग घायल हुए ।13 अक्टूबर को आपदा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर, सांसद पप्पू यादव और अन्य विधायकों पर उपद्रवियों ने पथराव भी किया । पुलिस ने लाठीचार्ज के साथ आँसू गैस के गोले छोड़े । 38 लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया।14 अक्टूबर को उदयकिशुनगंज के एस डी पी ओ का तबादला भी किया गया । थानाध्यक्ष को सस्पेंड सस्पेंड कर दिया गया । इंटरनेट पर रोक लगा दी गयी । हर चौक-चौराहे पर पुलिस बल तैनात कर दी गयी । पुलिस ने अबतक 40 लोगों को गिरफ्तार किया है। पंडाल में तोड़फोड़ के बाद दो गुटों में मारपीट की वजह से इतनी बड़ी घटना हुयी।
11 अक्टूबर को पूर्वी चम्पारण जिले के तुरकौलिया में पंडाल में तोड़फोड़ करने पर दो गुटों में मारपीट हुई। इसके बाद12 अक्टूबर को: तनाव काफी बढ़ गया और उपद्रवियों ने पुलिस के सामने कई दुकानें लूट ली। पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। प्रशासन ने धारा 144 लगा दिया।
14 अक्टूबर को चंपारण के ही सुगौली बाजार में मूर्ति विसर्जन के दौरान दो पक्ष आपस में भिड़ गए। फायरिंग और पत्थरबाजी हुई। एडीएम , दो जवान सहित दर्जनभर लोग घायल हो गए । पूरे जिले में इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी गयी। अभी भी तनाव है। पुलिस की गश्त जारी है।
13 अक्टूबर को औरंगाबाद के वारुण थाना के योगिया गांव में दो गुटों में मारपीट और रोड़ेबाजी हुई। एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल।14 अक्टूबर को पूरे गांव में धारा 144 लगा दिया गया। पुलिस जवानों के साथ डी एम ,एस पी ने सड़कों पर पैदल मार्च किया। इस गांव में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है। अभी भी तनाव है।
13 अक्टूबर को सीतामढ़ी जिले के कन्हौली थाना क्षेत्र के कचोड़ गांव में दो गुटों के बीच हिंसक झड़प हुयी । करीब 17 झोपड़ियों को जला दिया गया। स्थिति को नियंत्रित करने मौके पर पहुंची पुलिस पर भी पथराव किया गया। पुलिस को चार राउंड हवाई फायरिंग करनी पड़ी। 14 अक्टूबर को कचोड़ गांव को पुलिस छावनी में बदल दिया गया। अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती से स्थिति पर कंट्रोल पाया गया।
13 अक्टूबर को ही गया के बुनियादगंज में जुलूस के दौरान दो पक्षों के बीच विवाद के कारण दोनों ओर से पत्थरबाजी हुयी । पुलिस ने पांच राउंड हवाई फायरिंग की। महिलाओं के साथ छेड़खानी से विवाद बढ़ा। इलाके को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया।
इन सारी घटनाओं का लब्बोलुआब एक ही है , वो है सतर्कता में कमी , सुरक्षा में कोताही क्योंकि जहाँ जहाँ तनाव हुए वहां लड़ाई की कोई बड़ी वजह नहीं रही , कहीं छेड़खानी तो कहीं हुड़दुंगबाजी , कहीं लापरवाही तो कहीं बदइंतजामी की वजह से हादसा हुआ। सवाल ये उठता है कि क्या पहली बार दो अलग अलग सम्प्रदायों के त्यौहार एक ही समय हुए ? क्या पहली बार दो संप्रदाय एक इलाके या समाज में इकट्ठा हुए थे ? निश्चित ही जबाब ना में होगा। तब सवाल ये जरूर खड़ा होता है कि कहीं न कहीं इच्छा शक्ति और उत्तरदायित्व का अभाव रहा है जो साफ नजर आ रहा है।
इन दिनों बिहार की जनता से मिले जनमत से बौराये लोगों की सरकार जनता से ही दूर कहीं अपनी उस रणनीति में खुद को लगाए बैठी है जो आनेवाले दिनों में उसे इससे अच्छा सिंहासन दिला सकता है। कभी उत्तरप्रदेश तो कभी हरियाणा की चौखट लाँघ आते हैं इस उम्मीद से कहीं उनके कद का ग्राफ कुछ इंच बढ़ जाये, अपने सूबे की जिम्मेवारियों से निजात मिले इस जुगत में अभी से लगे बैठे हैं और पास पड़ोस में एक सैलानी की तरह घूमकर आ जाने भर से दूसरी बड़ी सत्ता की फ़िराक में व्यस्त से हो गए हैं। इन्ही सब जुगाडो में आजकल पूरी सुशाशन की टीम बिहार की पहाड़ी नगरी राजगीर में चैन की तो नहीं पर एक बेचैनी की बांसुरी जरूर बजाने में व्यस्त है जहाँ से उम्मीद तो वो एक अच्छे सुर और संगीत की कर रहे हैं पर उन्हें ये नहीं पता कि ज्यादा ऊँचा संगीत कानफाडू शोर में भी तब्दील हो जाता है