आज प्रायः सभी अख़बार और टीवी चैनल खुलेआम धंधे पर उतर आए हैं। ज़िम्मेदार पत्रकारों का या तो इस माहौल में दम घुट रहा है या वे बाहर कर दिए गए हैं। सतही और फूहड़ लोगों ने महत्वपूर्ण संपादकीय पदों पर कब्ज़ा जमा रखा है। अधिकांश समाचार और विचार किसी न किसी एजेंडे के तहत परोसे जा रहे हैं। इसलिए मीडिया को नियंत्रित करने और जवाबदेह बनाने की ज़रूरत तो है, हालाँकि मैं यह मानता हूँ कि बैन लगाना किसी समस्या का हल नहीं।
मेरा ख्याल है कि किसी चैनल को बैन करने की बजाय सरकार को उसके प्रमोटर्स और संदिग्ध पत्रकारों के वित्तीय लेन-देन और संपत्तियों की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए और दोषी पाए जाने पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर कोई मीडिया हाउस जान-बूझकर देश के सुरक्षा हितों की अनदेखी करता है और यह साबित हो जाता है, तो उसका तो लाइसेंस कैंसिल होना चाहिए, एक दिन का बैन लगाने से क्या होगा?
मीडिया के लिए यह आपातकाल नहीं, विपत्ति काल है। वह विश्वसनीयता के गंभीर संकट से गुज़र रहा है। इसलिए जो लोग एकतरफा बात कर रहे हैं, वे नहीं चाहते कि मीडिया से भ्रष्टाचार ख़त्म हो और उसकी विश्वसनीयता बहाल हो। मेरी नज़र में अगर सरकार कसूरवार है, तो दोषी मीडिया भी है। मीडिया के शुद्धीकरण का अभियान चलाए बिना अकेले सरकार को दोष देने से आप जनता का भरोसा और समर्थन हासिल नहीं कर सकते। मीडिया और अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर आप कब तक गलत का बचाव और समर्थन करते रहेंगे?
इसलिए मेरी राय में मीडिया आज अपने हालात के लिए खुद ही अधिक ज़िम्मेदार है। इसमें वह चैनल भी शामिल है, जिसपर एक दिन का ban लगा है। इस चैनल की विश्वसनीयता भी उतनी ही संदिग्ध है, जितनी औरों की। इस चैनल ने अपने ईमानदार, निष्पक्ष, तेजस्वी और जन-पक्षधर पत्रकारों को निकाल बाहर किया और बाज़ार में भ्रष्ट पत्रकारों की बड़ी खेप तैयार कर उन्हें बढ़ावा दिया। देश में बड़ी संख्या में लोग ऐसा मानते हैं कि यह चैनल शुरू से ही साम्प्रदायिक, जातिवादी और प्रो-टेररिस्ट प्रो पाकिस्तान एजेंडे पर चलता रहा है।
बहरहाल, सवाल किसी एक चैनल का नहीं होना चाहिए। आज समूचा मीडिया पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों और जन-आकांक्षाओं से खिलवाड़ कर रहा है। अगर हम एक चैनल पर एक दिन के बैन से दुखी हैं और सरकार के कदम का विरोध करना चाहते हैं तो हमें मीडिया की इस अधम स्थिति पर भी विचार करना होगा।