तब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री थीं और इलाहाबाद के बाहुबली सांसद अतीक अहमद जेल में बंद थे। कहानियों के मुताबिक जेलर को ऊपर से आदेश मिले थे कि अतीक अहमद को उनकी तशरीफ पर रोज सुबह-शाम चार डंडे लगाए जाएं। कहानी के मुताबिक जेलर ये कहते हुए नियम से सुबह और शाम अतीक की तशरीफ पर लाठियां बरसाता था-‘अतीक अमहद, उठा अपनी तहमद, क्योंकि मायावती हैं सहमत।’ मैं फिर कह रहा हूं कि इस कहानी की सच्चाई का कोई सबूत नहीं है, लेकिन नेताओं, पत्रकारों और पुलिस वालों के बीच ये कहानी सुर्खियों में बनी रही।
कुछ ऐसा ही हुआ था राजा भइया के साथ। समाजवादी पार्टी के बाहुबली नेता राजा भइया फतेहगढ़ जेल में बंद थे, गरमी के दिन थे, नियमों के मुताबिक उन्हें कूलर और अखबार की सुविधा मिलनी थी, लेकिन उन्हें कूलर नहीं मिला था। जेलर से शिकायत की, कूलर नहीं मिला। हाईकोर्ट में गुहार लगाई। वहां से अखबार और कूलर की सुविधा देने का आदेश आ गया। अब जेल में राजा भइया को जो कमरा मिला था उसमें कूलर लगा, नीचे जेलर ने उपले सुलगवा दिए। कूलर चालू, भीतर राजा भइया का दम घुटने लगा, बाप-बाप चिल्लाने लगे। जेलर बोला-साहब हमको तो आदेश मिला है अदालत का। अब तो कूलर बंद नहीं होगा। कहते हैं कि जेल में राजा भइया को नानी याद आ गई। रोज कुछ इसी तरह उन्हें भरी दुपहरी और रात में उपलों के धुएं के साथ कूलर सुख मिलता रहा। और हां, अखबार भी उन्हें रोज मिलता था, लेकिन उनके पास जाने से पहले अखबार को पानी में डाला जाता था। अब ये कहने की जरूरत नहीं कि राजा भइया पर ऐसा ऐक्शन लेना कोई हंसी खेल नहीं था। किसी जेलर की इतनी हिम्मत तभी होगी, जब इसके लिए आदेश ऊपर से आए होंगे।
मायावती के राज में अपराध होते ही ऐक्शन होता था। जो मायावती की निगाह में चढ़ गया तो फिर चढ़ गया, उसकी खैर नहीं। विपक्षी तो विपक्षी उनकी अपनी पार्टी के बाहुबली भी मायावती के कोप से सहमे रहते थे। जिस भी विधायक या मंत्री पर आरोप लगा, मायावती ने न सिर्फ उसे बर्खास्त किया, बल्कि जेल में भी भेजा। मेरा एक मित्र शेखर तिवारी औरैया से पहली बार विधायक बना था, मायावती का पसंदीदा था, लेकिन इंजीनियर हत्याकांड के बाद मायावती ने उसे जेल में डलवा दिया, चार महीने से ज्यादा विधायकी का सुख भोग नहीं पाया। आठ बरस से ज्यादा हो गए, वो अभी भी जेल में है, उसे उम्र कैद की सजा हुई है। बीएसपी विधायक गुड्डू पंडित को भी ऐसे ही मायावती ने सीखचों के पीछे भेज दिया था। मायावती ने अपने जिन विधायकों और मंत्रियों को खुद जेल भेजा, उनमें से कई तो आज भी जेल में हैं।
ये पोस्ट लिखने का मतलब ये नहीं कि मायावती के शासन की शान में कसीदे काढ़ रहा हूं, लेकिन इलाहाबाद में अतीक अहमद और उनके गुर्गों की गुंडागर्दी की खबर आई तो बरबस ये बातें याद आ गईं। अखिलेश यादव निश्चित रूप से सबसे काबिल मुख्यमंत्री हैं, साढ़े चार साल के उनके कार्यकाल में उन पर एक भी दाग नहीं है, लेकिन उनके खानदान का अपराधियों से प्रेम कम होने का नाम नहीं लेता। मुलायम हों या शिवपाल यादव, अपराधियों से रिश्ते इन्हें सबसे ज्यादा रास आते हैं। डाकू छविराम, अरुण शंकर शुक्ला उर्फ ‘अन्ना’, डीपी यादव से लेकर मुख्तार अंसारी तक लंबी फेहरिस्त है। समाजवादी पार्टी की सरकार में गुंडे हमेशा ही भयमुक्त रहे हैं। अखिलेश विकास की जितनी भी बातें कर लें, लेकिन गुंडागर्दी का दाग वे अपनी सरकार के दामन से धो नहीं पा रहे हैं। जब तक ये दाग उनकी पार्टी और सरकार पर हैं, अतीक अहमदों, मुख्तार अंसारियों, राजा भइयों की मनमानी पर कोई रोक नहीं लगा सकता।
वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र की फेसबुक वॉल से साभार