बीजेपी के भीष्म पितामह एक बार फिर नाराज़ हैं और पूरी तरह लाचार भी। नाराज़ इसलिए हैं कि एक महीने से हर रोज़ संसद की कार्यवाही शोर-शराबे की भेंट चढ़ जाती है और कोई काम काज नहीं हो पाता। और लाचार इस तरह हैं कि बार-बार नाराज़गी जताने पर भी कोई उनकी बातों पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं।
बताया जा रहा है कि नोटबंदी के मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा में हो रहे हंगामे और बार-बार कार्यवाही स्थगन से काफी दुखी हैं। आज जब सदन की कार्यवाही एक बार फिर से कल तक के लिए स्थगित कर दी गई, तो आडवाणी कुछ देर तक सदन में ही बैठे रह गए। इसके बाद उन्होंने कई लोगों से बात की, जिनमें केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह शामिल हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने राजनाथ सिंह से कहा है कि वे यह सनुश्चित करें कि कम से कम सत्र के आखिरी दिन दोनों सदनों की कार्यवाही सुचारू रूप से चले और नोटबंदी पर चर्चा हो।
आडवाणी ने कुछ विपक्षी नेताओं से भी अनौपचारिक बातचीत की। इन्हीं में से एक तृणमूल कांग्रेस के इदरीस अली के मुताबिक, उनसे बातचीत में आडवाणी ने यहां तक कह दिया कि संसद में जिस तरीके से हंगामा हो रहा है और कोई चर्चा नहीं हो पा रही है, उससे वे काफी आहत हैं और मन करता है कि संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दें। इदरीस अली के मुताबिक आडवाणी ने यहां तक कहा कि अगर उनकी जगह अटल बिहारी वाजपेयी होते, तो उनके मन में भी ऐसे ही विचार आते।
बताया जा रहा है कि लालकृष्ण आडवाणी संसद में चल रहे हंगामे के लिए न सिर्फ़ विपक्ष से, बल्कि सरकार और लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से भी नाराज़ हैं। दरअसल नोटबंदी के मुद्दे पर संसद का समूचा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ चुका है और अब सिर्फ़ एक दिन यानी शुक्रवार, 16 दिसंबर का दिन बचा है। एक तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के हंगामे के लिए विपक्ष को ज़िम्मेदार बताते हुए कहा है कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जा रहा। जबकि विपक्षी नेता राहुल गांधी ने भी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह उन्हें बोलने नहीं दे रही। कुल मिलाकर, हालात यह हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपनी-अपनी राजनीति के चक्कर में पूरे सत्र को बर्बाद कर दिया।
आडवाणी का मानना है कि अगर संसद का सत्र आखिरी दिन भी नहीं चला, तो यह संसद की हार होगी और सभी सांसदों की इससे काफी बदनामी होगी। पिछले हफ्ते भी इस मुद्दे पर उन्होने अपनी नाराज़गी जताई थी, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। अब देखना है कि ढाई साल पहले ही मार्गदर्शक मंडल में ढकेल दिए गए अपने इस वरिष्ठ नेता की भारतीय जनता पार्टी और सरकार में सुनवाई होती है कि नहीं।