देश के थियेटरों में फिल्म की शुरुआत से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य करने वाले जस्टिस दीपक मिश्रा देश के बेहतरीन जजों में से एक हैं और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर समेत सुप्रीम कोर्ट के तमाम जजों के बीच वरीयता क्रम पर वे तीसरे नंबर पर हैं। 27 अगस्त 2017 को वे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी बन सकते हैं। और अगर वे देश के चीफ जस्टिस बनते हैं, तो करीब 14 महीने तक इस पद पर रहेंगे।
जस्टिस दीपक मिश्रा देश के 21वें चीफ जस्टिस स्वर्गीय रंगनाथ मिश्र के भतीजे हैं। इसलिए कह सकते हैं कि न्यायिक सेवा का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। जस्टिस रंगनाथ मिश्र 25 सितंबर 1990 से 24 नवंबर 1991 तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे थे।
थियेटरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य करने के अपने इस ऐतिहासिक फैसले से पहले भी जस्टिस दीपक मिश्रा ने कई बेमिसाल फैसले सुनाए और देश का दिल जीता।
- जस्टिस मिश्रा ही उस बेंच का नेतृत्व कर रहे थे, जिसने 1993 के मुंबई बम धमाकों के गुनहगार आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी का रास्ता प्रशस्त किया। उन्होंने फांसी रोकने की याकूब मेमन की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा- “डेथ वारंट पर रोक लगाना न्याय का मखौल होगा। इसलिए याचिका ख़ारिज की जाती है।“ आपको याद होगा कि जस्टिस मिश्रा के नेतृत्व में तीन जजों की यह बेंच याकूब मेमन की फांसी से ठीक पहले की अप्रत्याशित परिस्थितियों में रात में 3.20 बजे बैठी थी और करीब डेढ़ घंटे की गहन सुनवाई के बाद फांसी पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी थी। इस फैसले के बाद जस्टिस दीपक मिश्रा को एक अनाम खत के ज़रिए जान से मारने की धमकी भी मिली थी।
- पदोन्नति में आरक्षण से जुड़े एक मामले में न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी के साथ मिलकर न्यायमूर्ति मिश्रा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि प्रोन्नति में आरक्षण तभी दिया जा सकता है, जब इसका औचित्य साबित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े और सबूत दिये जा सकें।
- इससे पहले जस्टिस मिश्रा ने एक मामले में दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि कोई भी एफआईआर दाखिल होने के 24 घंटे के भीतर इसे उसकी वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाना चाहिए।
- तेरह साल पहले जब जस्टिस मिश्रा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जज थे, तब भी उन्होंने राष्ट्रगान को लेकर एक फैसला दिया था कि इसे कब और कैसे गाया और बजाया जा सकता है। इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक, इत्तेफाक ये कि उस मामले में भी याचिकाकर्ता श्याम नारायण चौकसी ही थे। तब उन्होंने इस बात पर एतराज जताया था कि करन जौहर की फिल्म “कभी खुशी कभी गम” में राष्ट्रगान को गलत तरीके से पेश किया गया है और दर्शक भी इसके बजने के दौरान खड़े नहीं हो रहे। इस याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस मिश्रा ने इस फिल्म की स्क्रीनिंग पर तब तक रोक लगाने का फैसला सुना दिया था, जब तक कि फिल्म से वह दृश्य न हटा लिया जाए। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की स्क्रीनिंग पर लगी रोक हटा ली थी।
आइए उड़ीसा से आने वाले जस्टिस दीपक मिश्र के बारे में कुछ बुनियादी जानकारियां हासिल करते हैं-
- जन्मतिथि- 3 अक्टूबर 1953
- सबसे पहले 14 फरवरी 1977 को एक वकील के तौर पर उड़ीसा हाई कोर्ट में सूचीबद्ध हुए।
- 17 जनवरी 1996 को उड़ीसा हाई कोर्ट में एडीशनल जज के तौर पर नियुक्त हुए।
- 3 मार्च 1997 को उनका तबादला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कर दिया गया।
- 19 दिसंबर 1997 को वे स्थायी जज बन गए।
- 23 दिसंबर 2009 को वे पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त हुए।
- 24 मई 2010 को उनकी नियुक्ति दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर हुई।
- सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर वे 10 अक्टूबर 2011 को नियुक्त हुए।
- जस्टिस मिश्र 2 अक्टूबर 2018 को रिटायर होंगे।