यूं तो पाकिस्तान में हर महीने दो-तीन बड़े-बडे आतंकवादी हमले होते हैं, लेकिन इस बार के हमले के बाद उसके प्रति लोगों में पहले जैसी सहानुभूति महसूस नहीं की जा रही। जब पेशावर के स्कूल पर आतंकी हमला हुआ था तो पूरा भारत रोया था, लेकिन कल जब बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में पुलिस ट्रेनिंग कैम्प पर हमला हुआ है, तो आम लोगों की प्रतिक्रिया यही है कि जो भस्मासुर को पोसेगा, उसका यही हाल होगा।
क्या एक दिन आतंकवाद का भस्मासुर सचमुच पाकिस्तान को भस्म कर देगा? या पाकिस्तान समय रहते इस भस्मासुर से लड़ने के लिए तैयार हो पाएगा? क्या इस देश में आतंकवाद के फलने-फूलने के पीछे कट्टर धार्मिक शिक्षा ज़िम्मेदार है? या फिर अमेरिका और चीन जैसे मुल्कों की शह पर आतंकवाद यहां इस पैमाने पर फैल गया है? आख़िर इस आतंकवादी देश का इलाज क्या है? क्या पाकिस्तान के अस्तित्व में रहते भूगोल के इस हिस्से से आतंकवाद ख़त्म नहीं हो सकता? पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को खुला संरक्षण दिये जाने की स्थिति भारत की रणनीति क्या हो?
इन्हीं सवालों पर देखिए मीडिया सरकार के सीईओ अनुरंजन झा और वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार की विचारोत्तेजक बहस आज के ‘अनुरंजन v/s अभिरंजन’ में-