पहलवान परिवॉर उर्फ़ मुलायम राजपरिवॉर में वॉर पर आधारित एक धांसू फिल्म बनाने जा रहा हूं मैं। इसे देखकर अगर आंसू न आ गए आंखों में, तो कहिएगा। इसके डायरेक्टर एक ऐसा “बाहरी” व्यक्ति होगा, जिसे “भीतर” की पूरी जानकारी होगी। इसकी स्टोरी, स्क्रीन-प्ले और डायलॉग के कुछ महत्वपूर्ण हिस्से देखें।
दृश्य एक-
पहलवान परिवॉर के तमाम किरदार एक बड़े हॉल में फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ की तर्ज पर एक-दूसरे की तरफ़ तकिया फेंक-फेंककर अंताक्षरी खेल रहे हैं। जमकर नाच-गाना और एक्टिंग-सैक्टिंग होती है। ऐसी कि निशा-प्रेम (माधुरी-सलमान), राजेश-पूजा (मोहनीश-रेणुका), समधी-समधन (आलोक नाथ-रीमा लागू) और लल्लू-चमेली (लक्ष्मीकांत बेर्डे-प्रिया अरुण) की जोड़ियां भी फ़ीकी पड़ जाएं। ऐसा सुहाना माहौल है कि लगता नहीं कि इस पहलवान परिवॉर में भी कभी वॉर हो सकता है।
दृश्य दो-
अखिलेश अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ शानदार सरकार चलाते हैं। सर्वत्र शांति बनी रहती है। लुटेरा शांति से लूट लेता है। बलात्कारी शांति से बलात्कार कर लेता है। मर्डरर शांति से मर्डर कर देता है। भ्रष्टाचारी शांतिपूर्वक घूस लेते और देते हैं। उत्तर प्रदेश का विज्ञापन तैयार किया जा रहा है- “यूपी में दम है, क्योंकि जुर्म यहां कम है। उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश।“
दृश्य तीन-
फिर एक दिन अखिलेश सरकार के भैंस-प्रेमी मंत्री आज़म ख़ान की भैंस चोरी हो जाती है। पहली बार शासन-प्रशासन की शांति भंग हो जाती है। राज्य भर की पुलिस भैंस खोजने लगती है। सारे एसपी-डीएम लोक-प्रशासन की पुरानी किताबों के पन्ने पलट-पलटकर देखते हैं कि इसमें मंत्री की भैंस गुम हो जाने की स्थिति में उसे ढूंढ़ने की कोई तरकीब दी गई है कि नहीं।
दृश्य चार-
भैंस मिल जाती है। फिर सर्वत्र शांति व्याप्त हो जाती है। इस बीच शांतिपूर्वक कई बच्चे गायब हो जाते हैं। शांतिपूर्वक कई लड़कियां उठा ली जाती हैं। लेकिन राज्य में हवन चल रहा है- “ऊं शांति शांति शांति।“ राज्य के नर-नारियों ही नहीं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों सबको शांत करा दिया जाता है।
दृश्य पांच-
फिर एक दिन बलात्कार की कुछ घटनाओं को लेकर मीडिया के दुष्ट लोग हंगामा खड़ा कर देते हैं। पहलवान परिवॉर के मुखिया मुलायम सिंह बड़े नाराज़ होते हैं। कहते हैं- “लड़के हैं, ग़लतियां हो जाती हैं, तो क्या आप उन्हें फांसी चढ़ा देंगे?” उनके ऐसा कहते ही परिवॉर के सभी लोग राहत की सांस लेते हैं। सभी सहमति में सिर हिलाते हैं- “हां… हां… सही तो कहा है… लड़के हैं, ग़लतियां हो जाती हैं, तो क्या फांसी चढ़ा देंगे उन्हें?” न परिवॉर में वॉर छिड़ती है, न सरकार में वॉर छिड़ती है। पुनः सर्वत्र शांति व्याप्त हो जाती है। गाना बजता है- “ये राज्य है अमन का, यहां की फ़िज़ा है निराली। यहां पे सब शांति शांति है।“
दृश्य छह-
मुलायम दरबार का दृश्य। वहां परिवॉर के हर शख्स की सुनवाई होती है।
एक भाई पहुंचकर कहता है- नेताजी, “क” को मंत्री बना दीजिए।
नेताजी तुरंत सुभाष चंद्र बोस की तरह जोश से भर उठते हैं औऱ अखिलेश को फोन लगा देते हैं- “अखिलेश, बेटा… ‘क’ को मंत्री बना दो।“
अखिलेश- “जी पापा।“
‘क’ को फौरन मंत्री बना दिया जाता है।
फिर कोई भतीजा आकर कहता है- “चाचा, ‘ख’ तो बहुत बेकार मंत्री है।“
मुलायम कहते हैं- “अच्छा?”
तुरंत अखिलेश को फोन लगाते हैं- बेटा, ‘ख’ को बर्खास्त कर दो।
अखिलेश- “जी पापा”
‘ख’ को बर्खास्त कर दिया जाता है।
फिर कोई बेटी-बहू आ जाती है- पापा, ‘ग’ को फलाना सचिव बनवा दीजिए न।
मुलायम कहते हैं- “अभी लो।“
तुरंत अखिलेश को फोन लगाते हैं और ‘ग’ को फलाना सचिव बनवा दिया जाता है।
ऐसे ही शांति से सब कुछ चलता रहता है। एक दिन राज्य मंत्री के दर्जे थोक में बांट दिये जाते हैं। दूसरे दिन थोक में छीन लिये जाते हैं।
नेताजी का इकबाल बुलंद है। परिवॉर में किसी की “हैसियत” नहीं है कि उनकी बात को ना कह दे।
दृश्य सात-
फिर चुनावी साल आता है। पहलवान परिवॉर में सबकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं सिर उठाने लगती हैं। कुछ “बाहरी” लोग इसे ताड़ जाते हैं और परिवॉर में वॉर कराने की जुगत में जुट जाते हैं।
कोई आकर भतीजे अखिलेश के कान भरता है- “आप किस बात के मुख्यमंत्री हैं? मुख्यमंत्री तो वह होता है, जिसकी बात सभी सुनें। यहां तो आप ही सबकी बात सुनते रहते हैं।“
कोई जाकर चचा शिवपाल के कान में फुसफुसाता है- “बाप तो आख़िर बेटे का ही होगा। चाहो तो आजमा कर देख लो।“
“बाहरी” लोगों का दांव काम कर जाता है। चुनावी साल में पहलवान परिवॉर में वॉर शुरू हो जाती है।
दृश्य आठ-
इस बीच, शिवपाल कौमी एकता के रहनुमाओं मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफ़ज़ाल अंसारी से “माई” समीकरण वाली कुछ गिटपिट कर लेते हैं और उनकी पार्टी के अपनी पार्टी में विलय का एलान कर देते हैं।
लेकिन इससे अखिलेश को मौका मिल जाता है- “गंदे कहीं के। मेरी कमीज़ देखो।“ अपनी कमीज़ दिखाते हैं। कॉलर अप करते हैं। और मुख्तार की पार्टी का विलय कैंसिल कर देते हैं।
शिवपाल सुलग उठते हैं। मुलायम दरबार में हाजिरी लगाकर आंसू बहाते हैं- “भतीजा तो कुछ सुनता ही नहीं है। आप भी तो बेटे की ही सुनिएगा। भाई को कौन पूछता है?“
मुलायम पिघल जाते हैं। फिर से मुख्तार की पार्टी के विलय का एलान होता है।
अखिलेश फिर भड़क जाते हैं और फिर से विलय रुकवा देते हैं।
कुल मिलाकर, फिल्म के इस हिस्से में विलय होता है, रुकता है। होता है, रुकता है। ऐसा कई बार होता है।
दृश्य नौ-
मुख्यमंत्री निवास में अखिलेश गाना गाते हैं- “मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्ज़ी।“
उधर शिवपाल भी अपने समर्थकों के बीच यही गाना गाते हैं- “मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्ज़ी।“
अखिलेश को भरोसा है कि मुलायम सिंह मेरे पापा हैं। होंगे तो अंत में बेटे के ही!
शिवपाल को लगता है कि सगा छोटा भाई हूं। ऐसा इमोशनल कार्ड खेलूंगा कि नेताजी दिल से मजबूर हो ही जाएंगे।
दृश्य दस-
इस वॉर के दौरान हर कोई यही कहता है कि “नेताजी का फैसला अंतिम होगा। किसकी हैसियत है, जो नेताजी की बात न सुने।“
नेताजी को यह सब सुनकर उम्र के इस पड़ाव पर भीतर ही भीतर गुदगुदी का अहसास होता है- “सब मेरी बात मानते हैं। मैं कैसा भी झगड़ा सुलझा सकता हूं। मेरी एक हांक से सब दौड़े चले आते हैं।“
सोचते-सोचते नेताजी फोन मिला देते हैं- “अखिलेश, दो मंत्रियों को बर्खास्त कर दो।“
अखिलेश दोनों मंत्रियों को बर्खास्त कर देते हैं। बहती गंगा में हाथ धोते हुए एक सचिव को भी हटा देते हैं, जो चचा शिवपाल और एक “बाहरी” व्यक्ति के करीबी माने जाते हैं।
दृश्य ग्यारह-
बर्खास्त मंत्री रोते-गाते मुलायम के पास पहुंचते हैं। शिवपाल भी पहुंचते हैं। “बाहरी” व्यक्ति भी “भीतर” जाकर मिल आता है।
मुलायम को लगता है गड़बड़ हो गई। फिर अखिलेश को फोन लगाते हैं- “बेटा, दोनों मंत्रियों को वापस रख लो।“
अखिलेश भड़क जाते हैं- “पापा ये कैसे हो सकता है। कल बर्खास्त किया। आज बहाल कर लें?”
मुलायम कहते रह जाते हैं- “बेटा सुनो तो… सुनो तो…।“
अखिलेश कहते हैं- “इस बार आप सुनिए मुझे।“
शिवपाल कहते हैं- “देख लिया नेताजी? जब भतीजे का आपके साथ यह व्यवहार है, तब हमारे साथ क्या होगा?”
मुलायम सोच में पड़ जाते हैं। शिवपाल रुआंसे हो जाते हैं।
दृश्य बारह-
बेटे और भाई के बीच में संतुलन बनाने के लिए मुलायम पहलवानी के पेंच लगाते हैं। अखिलेश से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छीनकर शिवपाल को दे दी जाती है।
अखिलेश भी दांव चलते हैं। अध्यक्ष जी से एक मंत्रालय को छोड़कर बाकी सारे मंत्रालय ले लिये जाते हैं।
चचा एक बार फिर भतीजे के दांव से घायल होकर भाई के अखाड़े में पहुंचते हैं।
दृश्य तेरह-
रामगोपाल कहते हैं- “परिवार में कोई झगड़ा नहीं है। बाहरी व्यक्ति का हाथ है।“
अखिलेश भी कहते हैं- “बाहरी व्यक्ति का हाथ है।“
शिवपाल कहते हैं- “नेताजी की बात मानेंगे।“
जिस व्यक्ति पर “बाहरी” होने का शक है, वह कहता है- “अच्छा, मैं बाहरी हो गया? मैंने ही तो अखिलेश की शादी कराई थी।”(जैसे उसकी तो शादी होती ही नहीं।)
आजम कहते हैं- “ये देखो। नाम तो किसी ने लिया नहीं था। फिर भी बोला। चोर की दाढ़ी में तिनका।“
“बाहरी” की तरफ़ उंगली कर-करके “भीतरी” लोग कुश्ती लड़ने में जुट जाते हैं। ये चित। वो पट। ये घूंसा। वो धौल। बिल्कुल“सुल्तान” फिल्म टाइप सीन दिखाई देता है।
दृश्य चौदह-
मुलायम फिर बीच-बचाव करते हैं। इधर अखिलेश को समझाते हैं। उधर शिवपाल को भी समझा-बुझाकर भेजते हैं अखिलेश के पास।
लेकिन बंद कमरे में मल्ल युद्ध शुरू हो जाता है। ये वाला सीन “सुल्तान” फिल्म के क्लाइमैक्स जैसा रहता है।
15 मिनट के बाद कुश्ती कक्ष से निकलकर शिवपाल आते हैं। आंसू बहाते हैं। पसीना पोंछते हैं। धूल-मिट्टी झाड़ते हुए सभी पदों से इस्तीफा देने का एलान कर देते हैं। पत्नी और बेटे भी जिस-जिस पद पर हैं, इस्तीफा देने का एलान करते हैं।
दृश्य पंद्रह-
शिवपाल और अखिलेश की कुश्ती के बाद शिवपाल समर्थकों और अखिलेश समर्थकों की कुश्ती होती है।
तुरही बजती है- “महाभारत… ये कथा है बस स्वार्थ की… किंचित नहीं पुरुषार्थ की… महाभारत।“
शिवपाल की फौज कभी प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने वाले पहलवान जी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करती है, तो कभी उनके दूसरे भाई रामगोपाल को पार्टी से बाहर करने की।
चारों तरफ़ से आ रही रणभेरी की आवाज़ों से पहलवान जी का कलेजा फटता रहता है।
दृश्य सोलह-
यहां लालू जी का गेस्ट एप्पियरेंस आता है।
मुलायम लालू को फोन करके पूछते हैं- “क्या किया जाए? आपका अनुभव क्या कहता है?”
लालू कहते हैं- “देखS समधी जी, अंत में बेटे काम आता है। हमहु किए थे दू गो साला पर भरोसा। उ म एगो सधुआ से आप भी रिश्ता जोड़ लिए हैं। भाय वगैरह सब अपना जगह पर है, पर वारिस तो बेटे होता है। बैलेंस बनाबे में बेटवा कमज़ोर न हो जाए, एतना ध्यान रखिएगा।“
मुलायम को बात समझ में आ जाती है।
दृश्य सत्रह-
दिखाने के लिए मैराथन मीटिंगों का दौर चलता है। दूसरी तरफ़ अखिलेश समर्थक मुलायम हाय हाय के नारे लगाते हैं। कहीं से मैसेज जाने नहीं दिया जाता है कि पहलवान जी बेटे को भाई पर तरजीह दे सकते हैं।
दृश्य अट्ठारह-
अंत में पुत्र की पावर बरकरार रखी जाती है। भाई को संतुष्ट किया जाता है। तीन दिन पहले जिसे भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त किया जाता है, उसकी ससम्मान सरकार में वापसी हो जाती है। एलान होता है- “2017 चुनाव को प्रचंड बहुमत से जीतेंगे।“
इस तरह, फिल्म की हैप्पी एंडिंग होती है। “बाहरी” व्यक्ति का भविष्य एक बार फिर दांव पर लग जाता है। वे “बाहर” होंगे या “भीतर” ही रहेंगे- किसी को नहीं मालूम।