जंगलराज शब्द का उल्लेख न्यायालय ने जिन अपराधों के संदर्भ में किया था वो अपराधी शहाबुद्दीन दो दिन पहले रिहा हो गया ।
उसकी रिहाई के विरुद्ध बिहार सरकार न तो अपील में गयी और न ही सीसीए लगाने का कष्ट किया । जबकि 4 दिन पहले ही बाहुबली अनंत सिंह को कोर्ट से बेल मिलने की सूरत में सीसीए लगाकर अगले 1 साल तक बाहर आने से रोक दिया गया ।
प्रश्न है कि सरकार दोहरे मापदंड क्यों अपना रही है ?
बात केवल रिहाई की नहीं है । लालू जी के जंगलराज का खलनायक 11 सालों में अपना खौफ खो चुका था । शहाबुद्दीन के भय को पैदा करने के लिए बाकायदा 4 मंत्री, 30 विधायक और 1300 गाड़ियों की अगुवानी का इंतेजाम किया गया ।
प्रश्न है कि ऐसे आयोजन किसके इशारे पर हुआ और किस-किस की सहमति थी ?
नीतीश कुमार को परिस्थिति का सीएम बताने वाले बयान पर भड़के सीएम साहब तो शहाबुद्दीन को रास्ते चलता आदमी बता के पल्ला झाड़ लिए । लेकिन वो ये नहीं बता पाए कि उनके मंत्री-विधायक एक राह चलते आदमी जिसके बयानों का कोई मतलब नही उसके स्वागत में क्यों गये थे ?
दरअसल, पूरा प्रकरण पूर्व नियोजित है जिसमें लालू जी और नीतीश जी अपने हिस्से का अभिनय बखूबी कर रहे हैं । शहाबुद्दीन ने जेल के फाटक से निकलते ही नीतीश पर तंज कसते हुए यह दिखलाया कि उनकी जमानत में नीतीश का कोई हाथ नही । यही खेल जदयू के प्रवक्ता व मंत्री भी खेल रहे हैं शहाबुद्दीन के विरुद्ध ब्यान देकर । मीडिया कवरेज जनता को गुमराह करने के लिए बखूबी इस्तेमाल हो रहा है । लेकिन सुशासन बाबू ने अपने ही सुशासन को ठेंगे पर रख दिया तो अब उम्मीद बेमानी है । यह सरकार पूर्णतः लालू के कब्जे वाली सरकार है जहाँ अपराधियो के आगे सिस्टम दुम हिला रहा है ।