वह कौन कमबख़्त फोटो पत्रकार था, जिसने दाना मांझी और उसकी बेटी की तस्वीरें क़दम क़दम पर ख़ींची? केविन कार्टर की याद आ गयी, जिसने सूडान में अकाल के दौरान एक तस्वीर ख़ींची थी। 1993 की बात है। भूख से मरते हुए बच्चे पर एक गिद्ध की खुश नज़र को उसने अपने कैमरे में उतारा था। इस तस्वीर के लिए केविन को पुलित्ज़र पुरस्कार मिला। लेकिन वह इतने गहरे अपराधबोध में चला गया कि पुरस्कार मिलने के तीन महीने बाद ही उसने आत्महत्या कर ली। क्या कालाहांडी में दाना मांझी की बेबसी और उसकी बेटी के आंसुओं को अपने कैमरे में उतारने वाला पत्रकार भी किसी अपराधबोध में होगा? बेशक उसने हमारी व्यवस्था को नंगा कर दिया, लेकिन कैमरे पर अपनी आंख लगाते वक्त उसका अपना ज़मीर क्या बोल रहा था! सवाल दर सवाल है – पता नहीं किसी के पास कोई जवाब है भी या नहीं!!
वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार अविनाश दास के फेसबुक वॉल से साभार