आज तड़के बिहार के गया जिले में एक पुलिस अधिकारी की कुछ अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। गया जिले के कोठी थाना के थानेदार सुबह जब टहलने निकले थे उसी वक्त अपराधियों ने इस वारदात को अंजाम दिया। मोटरसाइकल से आए हमलावरों ने थानेदार कयामुद्दीन अंसारी को सिर और सीने में गोली मारी।
इस ताजा घटना के बाद इलाके के पुलिस अधिकारियों में डर व्याप्त है। बिहार में पिछले कुछ दिनों के अपराध के आंकड़े देखें तो साफ है कि अपराधियों के मनोबल किस हद तक आसमान छू रहे हैं। और तो और चंद महीनों में ही राज्य में सात पुलिस अधिकारियों की हत्या हुई है। वारदात के बाद इलाके की चौकसी बढ़ा दी गई है और सूबे के आला अधिकारी सीधे मॉनिटरिंग में जुट गए हैं।
पिछले दिनों जिन भी पुलिसकर्मियों की हत्याएं हुई हैं उनमें से ज्यादातर मामलों में अभी छानबीन जारी है, ना ही मामले का खुलासा हुआ है और ना ही कोई अपराधी गिरफ्तार हुआ है। सूबे की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे पुलिसकर्मी ही अगर वहां सुरक्षित नहीं रहेंगे तो फिर सुशासन का ठप्पा लगाने भर से राज्य का विकास कैसे होगा।
बिहार के युवा पत्रकार अमिताभ ओझा इस मामले पर कहते हैं कि पहले पुलिस वाले नक्सलियों के टारगेट पर होते थे।नक्सल इलाके में कभी सामने से कभी धोखे से पुलिस वालों को निशाना बनाया जाता था।लेकिन अब तो सरेआम अपराधी गिरोह पुलिस को टारगेट कर रहे है और गोलियों का निशाना बनाया जा रहा है।अगर आंकड़ो को देखे तो जमादार से लेकर इन्स्पेक्टर स्तर तक के सात पदाधिकारियो की हत्या हुई है। कुछ के मामले का खुलासा हुआ है तो कई मामले अभी भी अनसुलझे है।इनमे पूर्णिया,नालंदा,नवादा,छपरा ,मोकामा ,फतुहा ,बक्सर और गोपालगंज शामिल है। औरंगाबाद में नक्सलियों ने कई वैसे पुलिस कर्मियो के घरो को उड़ा दिया है जो नक्सल विरोधी ऑपरेशन में लगे है।अब सवाल उठता है की अधिकारी तो सुरक्षाकर्मियो के बीच रहते है लेकिन जो ग्राउंड जीरो पर रहकर क्राइम कंट्रोल में लगे होते है उनकी सुरक्षा तभी तक होती है जब तक वो डयूटी के दौरान पुलिस कर्मियो के साथ गश्त में होते है या थाने में होते है, लेकिन उनकी भी निजी जिंदगी है। एक सवाल यह भी है क्या इन पुलिस कर्मियो को पर्याप्त ट्रेनिंग मिली है।अगर देखे तो पुलिस लाइन में भी अब समय समय पर ट्रेनिंग देने की परिपाटी ख़त्म सी ही गई है। कई ऐसे पुलिस कर्मी दिख जायेंगे जिन्होंने वर्षो से फायरिंग की प्रैक्टिस नहीं की है।सेल्फ डिफेन्स की बाते भले ही कही जाती हो लेकिन कई ऐसे है जिनसे उनकी वर्दी भी नहीं संभलती। खैर कारण की पड़ताल के साथ ही निवारण भी बहुत जरुरी है नहीं तो अगर वर्दी वालो में खौफ हुआ तो फिर आम जनता का क्या है ?