धर्म पति है और राजनीति पत्नी तो “वो” कौन है

जब से मैंने सुना है कि धर्म पति है और उसकी कोई पत्नी भी है तब से मैं मतदाताओं के बारे में सोच रहा हूँ कि वो इन दोनों में से किसी एक के क्या लगते हैं या दोनों के क्या लगते हैं। पति के साइड से मतदाता देवर हुआ या पत्नी की साइड से साला लगेगा। मैं यह नहीं कह रहा कि राजनीति मतदाता की भाभी लगती है परंतु यह ज़रूर पूछ रहा हूँ कि कोई तो बताये कि वो मतदाता की क्या लगेगी। धर्म भैया है या जीजा है। लोकतंत्र में कोई भी रिश्ता मतदाता के बग़ैर नहीं हो सकता है।

धर्म और राजनीति अगर पति पत्नी हैं तो वो कौन हो सकता है। कोरपोरेट ! मल्लब उनके ही घर में तो ये पति पत्नी रहते हैं इसलिए पूछना तो बनता है कि मकान मालिक भी कुछ लगेगा या नहीं। धर्म और राजनीति ने लव मैरिज किया है या अरेंज वाला। यह भी कहा गया है कि हर पति की यह ड्यूटी होती है कि अपनी पत्नि को संरक्षण दे। हर पत्नि का धर्म होता है कि वो पति के अनुशासन को स्वीकार करे। जैन मुनि ने धर्म और राजनीति की शादी तो करा दी लेकिन संविधान को कहीं छोड़ आए। उसे संरक्षण और ड्यूटी के दायित्व से चलता कर दिया है। जैसे संविधान न तो धर्म हुआ न ही किसी की ड्यूटी। जबकि उसमें बताया गया है कि किस अनुच्छेद के तहत किसकी ड्यूटी क्या है । संविधान क्यों है? चुनाव क्यों है?

हरियाणा विधानसभा की यह घटना प्रकाश में आते ही सोशल मीडिया के नौनिहाल वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता लगाने लगे। जब पता नहीं चल पाया तो मैंने सोचा कि भारत सरकार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता लगाने के लिए एक कमेटी बनानी चाहिए। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने जितने शोध नहीं किये होंगे उससे ज़्यादा भारत की सरकारी कमेटियों ने करके फेंक दिये होंगे। हमारी कमेटियाँ वैज्ञानिक होती हैं तभी तो उनकी रिपोर्ट धूल भी खा लेती है। कमेटी पता लगाएगी कि वैज्ञानिक क्या है और दृष्टिकोण क्या है। हम भी अपनी तरफ से पता लगाते हैं।

दुनिया की कोई भी दृष्टि बग़ैर किसी कोण के मुकम्मल नहीं है। दृष्टि का मतलब है देखना। नज़र का वहाँ तक पहुँचना जहाँ तक सबकी नज़र नहीं पहुँच पाती। बग़ैर कोण की दृष्टियों क्या बेकार होती हैं? तिरछी नज़र मे इश्क़ है तो टेढ़ी नज़र में नफ़रत। कोण वाली दृष्टि में विज्ञान है या नहीं अब यही पता लगाना रह गया है। उसके विज्ञान का पता चलते ही कमेटी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता लगा लेगी। क्या पता इसी चक्कर में कुछ वैज्ञानिकों का भी पता चल जाए जो कि अपने दृष्टिकोण के साथ नज़र नहीं आते। आते भी हैं तो उपग्रह छोड़ने से पहले धार्मिक दृष्टिकोण से सलाह मशवरा करने चले जाते हैं।

जिन लोगों ने अभी तक राजनीति को कुवांरा रखा वही अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लेकर हंगामा कर रहे हैं। हमारी राजनीति की बारात निकल गई है और हम हैं कि जनवासा में हंगामा कर रहे हैं। मैं तो प्रसन्न हूँ कि राजनीति की धर्म से शादी हो गई। राजनीति अब अपने पति के संरक्षण और अनुशासन में रहेगी। मल्लब घर में रहेगी। मुनी जी, मौलवी जी और संत जी बाहर जाकर चुनाव लड़ आएँगे। मुझे नहीं पता कि तमाम पत्नियों को नई सखी राजनीति की ये हैसियत पसंद आई है या नहीं। वो तो अभी तक इसी राजनीति से अपने लिए आज़ादी मांग रही थीं कि हमें पतियों और पिताओं की चौकीदारी से मुक्त करो। लो कल्लो बात। अब उनकी राजनीति भी पत्नी हो गई है! हाथ पीले कर दिये गए हैं।

हरियाणा सरकार के मंत्री खुलेआम डेरा सच्चा सौदा के स्कूल को पचास लाख दे आए। ऐसा नहीं कि सिर्फ बुलाया ही जाता है। हमारे नेता मंत्री विधानसभा से ऊँची संतों की धर्म सभा में जाते भी तो हैं। अगर डेरा सच्चा सौदा के स्वामी को सदन में बुलाया जाये तो मैं स्वागत करूँगा। मुझे उनका डीजे गाना बहुत पसंद है। you are the love charger, you are my love charger यह सुनते हुए मैं भाव विभोर हो जाता हूँ। जब सदन में उनका कार्यक्रम होगा तो हम नीरस और नीतिगत विधानसभाओं को जीवंत होते हुए भी देख सकेंगे। नीति निर्माताओं में झूम पैदा होगी और वे मोहबब्त करने वाले सच्चे आइटम बन सकेंगे। इससे समाज में शांति आएगी।

जब भी ये कार्यक्रम हो, केजरीवाल जी को भी बुला लें। विशाल डडलानी को नहीं बुलायें। हो सकता है डडलानी जी हरियाणा के पहले इंग्लिश रॉक की नक़ल मार लें। कांग्रेस को भी बुला लें। उसके विधायक भी तो यह सब होते देख रहे थे। बीजेपी की सहायक नदी की तरह बहने वाली कांग्रेस को एतराज़ भी हुआ तो इस बात से कि मंत्री ने ख़ुद जाकर डेरा सच्चा सौदा को पचास लाख क्यों दिये। कांग्रेस ये आरोप जानबूझ कर इसलिए लगाती है कि बीजेपी उसे याद दिलाए कि उसने भी तो डेरा को संरक्षण दिया है। ये है कांग्रेस का आलसीपन। चाहती है कि बीजेपी ही मेहनत कर ये बताती रहे कि कांग्रेस भी उसी के जैसी है। कांग्रेस जब तक बीजेपी के साथ सदन में प्रवचन सुन रही थी तब तक दिक्कत नहीं हुई। दिक्कत तब हुई जब मंत्री जी वहाँ अकेले चले गए जहाँ से कांग्रेस भी वोट के लिए संसाधन जुटाती है। कांग्रेस कोई वैकल्पिक राजनीति की बात नहीं कर रही है।

जब संस्थाओं का सत्यानाश ही करना है तो गाजे बाजे के साथ होना चाहिए। एकमुश्त होना चाहिए। हम भूल जाते हैं कि हमारी एक आस्था संविधान भी है। उसकी अपनी एक पवित्रता है। हम नहीं चाहते कि इस प्रतियोगिता में कल किसी पादरी या मौलवी को भी बुलाया जाए। ऐसा नहीं है कि हम उनके अनुभवों,ज्ञान, मूर्खताओं और पाखंडों को महत्व नहीं देते। बिल्कुल देते हैं लेकिन उनकी जगह विधान सभा नहीं है। संसद नहीं है। लोकतंत्र में राजनीति एक स्वतंत्र कार्य है। मुनी जी के अनुसार यह किसी पति के अधीनस्थ होगी तो उसकी स्वतंत्रता चली जाएगी। संविधान पति पत्नी को बराबर मानता है। धर्म पति के रूप में पत्नी को अनुशासित करने वाला है तो संविधान छोड़ धर्म से ही अपने अधिकार मांग लीजिये। ये आपकी आस्था से खिलवाड़ नहीं है, संविधान में जो आपकी आस्था है उससे कोई खेल रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के ब्लॉग नई सड़क से साभार

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