”जो डरता नहीं वह बचता नहीं… डरिए ताकि बचने के उपाय करें”- यह वाक्य भूतपूर्व पत्रकार राहुल देव ने हिंदीवालों के संदर्भ में 15 सितंबर की मेरी एक पोस्ट पर लिखा है। मैं चाहता हूं कि इसके संदर्भ को व्यापक कर डालूं और इस बयान को अपने दौर की एक पारिभाषिक टिप्पणी के रूप में स्थापित कर दूं। क्यों? ऐसा क्या है इसमें? अभी मैं Pink Movie देखकर लौटा हूं। आप देखेंगे, तो समझेंगे कि डर क्या होता है। इंटरवल के पहले डर और आतंक के मारे आपकी नज़रें परदे से नहीं हटती हैं। भीतर धुकधुकी सी लगी रहती है कि अब कुछ अनिष्ट घटेगा। राहुलजी को मैं इस फिल्म में Piyush Mishra के निभाए वकील के किरदार के बतौर देखता हूं जो लड़कियों को लगातार डराता है- पुरुषों से, पितृसत्ता से, अपनी भाषा से, तेवर से, धनबल से, वादी के ऊंचे रसूख से।
इस फिल्म की तीनों लड़कियां डर के मारे अगर बचने के उपाय करने में लग जातीं तो उनकी दुनिया खत्म हो जाती। वे साहसी थीं, बची रहीं और जीत गईं। अन्यायी की हार हुई। वास्तविक जिंदगी में ऐसा कम देखने को मिलता है क्योंकि समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले उपदेशक हमें डरने की सलाह देते हैं। पंडे ईश्वर से डराते हैं, नेता अपनी पुलिस से। पैसे वाले पैसे की ताकत से डराते हैं, शिक्षक फेल होने से। मां-बाप अपने अनुभव से डराते हैं, तो समाज अपनी रवायतों से। प्रगतिशील लोग संघ से डराते हैं, तो संघ अपने हुड़दंगियों से। कुल मिलाकर सब हमें डराते ही रहते हैं। इस डर से हम उनके पाले में चले जाते हैं जो डरे हुए होते हैं। डरे हुओं की एकता अजीब होती है। इन्हें अंग्रेज़ी में मॉब लिन्चर कहते हैं। अकेले में डरे हुओं की फटती है।
धीरे-धीरे पूरा समाज जाति, क्षेत्र, भाषा, रसूख, पैसा, ताकत, धर्म, बिरादरी, समुदाय आदि के आधार पर डरे हुए लोगों की सोसायटी बन जाता है। फिर एक स्थिति ऐसी आती है जब यह डरी हुई सोसायटियों का समुच्चय अपने डराने वालों को ही सही ठहराने लग जाता है। इसे समाज का भक्ति-काल कहते हैं। वहां केवल एक ईश्वर होता है, बाकी सब भक्त। पिंक फिल्म इस गतिरोध को तोड़ती है। राहुल देव इस गतिरोध को कायम रखने का सुझाव देते हैं। अगर राहुलजी का बयान हमारे समाज का पारिभाषिक सच है, तो पिंक फिल्म उस समाज का पारिभाषिक झूठ। मैं सच के ऊपर इस झूठ को चुनना पसंद करूंगा क्योंकि यह फिल्म हमारे दौर का एंटी-थीसिस है- प्रतिपक्ष! आपका डराने वाला सच अगर आपको बचा ले जाए, तो आपको जिंदगी मुबारक!
तेजतर्रार पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार