मालूम पड़ता है इस ‘ट्विटर रेलमंत्री’ को भारतीय रेल यात्रियों की कोई वास्तविक समझ नहीं है। ये रेल मंत्री किसी बिल्डर की तरह रेल मंत्रालय को चलाना चाहता है। जिस तरह एक बिल्डर एक अपार्टमेंट बना कर मनामाना पैसा वसूलता है। मसलन अगर फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर है तो उसकी कीमत कुछ और होगी, पहले फ्लोर से पांचवें फ्लोर का फ्लैट है तो उसकी कीमत कुछ और…ऊपर से फ्लैट पार्क फेसिंग है तो कीमत और भी ज्यादा….सुरेश प्रभु जी ट्रेन को फ्रॉड बिल्डर का अपार्टमेंट मत बनाइए। बिल्डर और मंत्री होने के फर्क को समझिए….ट्विटर से उतरिये और रेल की सवारी शुरू कीजिए…..वरना हम तो डूबेंगे सनम मोदी को भी ले डूबेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज मलयानिल के फेसबुक वॉल से साभार.