मेरा ख्याल है कि बड़ी-बड़ी पार्टियों की आंखों के तारे, दुलारे, आजकल राजनीति-पटल पर देदीप्यमान बाहुबली नेताजी लोग शुरू-शुरू में गली के दो कौड़ी के गुंडे होते होंगे। शुरू-शुरू में वे हर गली में आम लोगों से लात-जूते भी खाते होंगे। उनकी भी वैसी ही धुलाई होती होगी, जैसी कि गली के दो कौड़ी के गुंडों की आज भी हुआ करती है। शुरू-शुरू में पुलिस वाले भी उन्हें लतियाने-जुतियाने का कोई मौका नहीं छोड़ते होंगे। शुरू-शुरू में वे भी पुलिस से वैसे ही भागते होंगे, जैसे गली के दो कौड़ी के गुंडे आज भी पुलिस वालों से भागते फिरते हैं। पकड़े जाने पर पुलिस उन्हें भी थूक चटवाती होगी, पेशाब पिलवाती होगी, मां-बहन की गालियां देती होगी, जैसे कि वह अक्सर गली के दो कौड़ी के गुंडों के साथ करती है।
लेकिन फिर धीरे-धीरे वे किसी ऐसे महान जननेता की निगाहों में आ जाते होंगे, जो गांधीवादी, समाजवादी, साम्यवादी,अंबेडकरवादी, लोहियावादी, राष्ट्रवादी इत्यादि उन्नत विचारों के बड़े ध्वजावाहक तो होते ही होंगे, लोगों की जातीय और धार्मिक अस्मिताओं के झंडावरदार भी होते होंगे। पहली बार उन्हें ही पता चलता होगा कि वह व्यक्ति जो इस वक्त गली का दो कौड़ी का गुंडा है, जिसे पब्लिक भी लतिया देती है और पुलिस भी जुतिया देती है, वह तो हमारे महान गणतंत्र का बहुत बड़ा सिपाही बनने के काबिल है। फिर वही पहली बार उसका इस्तेमाल चुनाव में करते होंगे और वह भी पूरे तन-मन-गन से उन्हें जिताने और इस प्रकार गणतंत्र की महान सेवा करने में जुट जाता होगा।
जैसे-जैसे गांधीवादी, समाजवादी, साम्यवादी, अंबेडकरवादी, लोहियावादी, राष्ट्रवादी इत्यादि उन्नत विचारों वाले महान जननेता का लाड़-दुलार उसके प्रति बढ़ने लगता होगा और अक्सर वह उनके दाएं, बाएं, आगे या पीछे नज़र आने लगता होता, वैसे-वैसे समाज और कानून में उसकी धाक बढ़ने लगती होगी। जो पब्लिक कुछ समय पहले तक उसे चौक-चौराहों पर सरेआम लतिया देती होगी और जो पुलिस उसे कभी भी थाने ले जाकर जुतिया देती होगी, वह धीरे-धीरे अपने आचरण और व्यवहार में सुधार लाने की कोशिशें करने लगती होगी। धीरे-धीरे पब्लिक उस महान जननेता के साथ-साथ उसे भी फूल-मालाएं पहनाना शुरू कर देती होगी और कोई केस-मुकदमा दर्ज होने की स्थिति में पुलिस भी उसे बचाने में जुट जाती होगी या फिर बहुत दबाव होने पर उसे गिरफ्तार करने की बजाय उसके आत्मसमर्पण करने का इंतज़ार करने लगती होगी। अदालतों में भी उसकी जमानत का इंतज़ाम आसानी से हो जाता होगा।
फिर एक दिन वह गली का दो कौड़ी का भूतपूर्व गुंडा भी उस महान जननेता की तरह सियासत के पैंतरे सीख जाता होगा। किसी मामले में फंसने पर कहता होगा कि वह अमुक जाति या धर्म का है, इसलिए उसे फंसाया जा रहा है। वह यह भी कहता होगा कि तमुक जाति के फलाने गुंडे की बात तो कोई नहीं करता, चूंकि वह अमुक जाति का है, इसलिए उसी को निशाना बनाया जा रहा है। फिर धीरे-धीरे गली का वह दो कौड़ी कां भूतपूर्व गुंडा अपनी जाति और अपने धर्म का बड़ा नेता बन जाता होगा और उस महान जननेता के कुशल मार्गदर्शन में तन-मन-गन से गनतंत्र स्थापित करने लगता होगा।
जैसे-जैसे लोग गनतंत्र स्थापित करने में गली के उस दो कौड़ी के भूतपूर्व गुंडे की काबिलियत का लोहा मानने लगते होंगे, वैसे-वैसे विधानसभा और लोकसभा चुनावों में उसे टिकट देने की मांग ज़ोर पकड़ने लगती होगी। और इस तरह एक दिन टिकट पाकर चुनाव जीतकर वह गनतंत्र की सेवा का इतिहास रच डालता होगा। इस प्रकार वह राजनीति के पटल पर देदीप्यमान नक्षत्र की तरह चमकने लगता होगा। हर पार्टी में उसकी मांग बढ़ जाती होगी। गांधीवादी, समाजवादी, साम्यवादी, अंबेडकरवादी,लोहियावादी, राष्ट्रवादी- सभी लोगों के लिए वह अपरिहार्य हो जाता होगा। उसकी जाति और धर्म से जुड़े लोग तो उसपर जान छिड़कने लगते होंगे।
अब जब गली का वह दो कौड़ी का भूतपूर्व गुंडा किसी मामले में फंसता होगा, तो उसे अपने मुंह से बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती होगी कि वह अमुक जाति या धर्म का है, इसलिए उसे फंसाया जा रहा है। अब उसकी जाति और धर्म के समझदार लोग खुद ही ज़ोर-शोर से कहने लगते होंगे कि उसे अमुक जाति या धर्म का होने की वजह से फंसाया जा रहा है। उसपर लगने वाले सारे आरोप और ठुकने वाले सारे मुकदमे राजनीतिक हो जाते होंगे। उसको छेड़ने का मतलब उसकी जाति और धर्म के तमाम लोगों को छेड़ना हो जाता होगा।
फिर एक दिन गली के उस भूतपूर्व दो कौड़ी के गुंडे की औकात इतनी बढ़ जाती होगी, कि जब हम जैसे लोग उसपर उंगली उठाते होंगे, तो उसकी जाति या धर्म से जुड़े समझदार लोग हमीं पर पिल पड़ते होंगे। वह हमें बताने लग जाते होंगे कि आप तमुक गुंडे के बारे में तो नहीं लिखते-बोलते, लेकिन अमुक मसीहा की आलोचना करते हो, क्योंकि आप बिके हुए हो, आप दलाल हो, आप पैसे खाते हो, आप अमुक जाति या धर्म के लोगों से नफ़रत करते हो। इसी तरह, जब हम जैसे लोग किसी दिन दूसरी जाति या धर्म से आने वाले गली के दो कौड़ी के किसी भूतपूर्व गुंडे की आलोचना करते होंगे, तो फिर उस जाति या धर्म के लोग भी हमें वही सब सुना जाते होंगे, जो पहली जाति या धर्म वाले पहले ही हमें सुनाकर चले गए होते हैं।
उस दिन हम जैसे लोगों को भी यह अहसास हो जाता होगा कि इस लोकतंत्र में गली के दो कौड़ी के गुंडे और घनघोर जातिवादियों एवं सांप्रदायिकों का फ्यूचर जितना अच्छा है, उतना किसी का नहीं।