नेताओं के लिए बड़ा आसान होता है कि कोई भावनात्मक मुद्दा पकड़ लो और तुरंत अपने को राज्य और लोगों का हितैषी साबित कर दो। वो भी बिना कुछ किए धरे। यह सियासत का वह शॉर्टकट है, जिसे अपनाकर ज़मीन से कटे और जनता की नज़रों से गिरे हुए नेता भी चमक जाते हैं।
नीतीश जी इस शॉर्टकट के पुराने खिलाड़ी हैं। जब-जब उनकी छवि पर ग्रहण लगता है और उनके अस्तित्व पर संकट आता है, वे इसी शॉर्टकट के सहारे बिहार की भोली-भाली जनता को ठगने का काम करते हैं। ख़ुद उनके आज के सहयोगी लालू यादव भी कल तक उनके बारे में यही कहा करते थे कि “ऐसा कोई सगा नहीं, नीतीश ने जिसको ठगा नहीं।“ और “नीतीश के पेट में दांत है।“
आजकल बिहार में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, जनता में व्याप्त होते भय और शहाबुद्दीन सरीखे बाहुबली की सरकार प्रायोजित रिहाई से नीतीश जी की छवि पर ज़बर्दस्त ग्रहण लगा हुआ है। जिन लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था, वे सभी पछता रहे हैं। ऐसे में, नीतीश जी को भी ऐसा कोई शिगूफा चाहिए था, जिससे वे अपनी विफलताओं को छिपाकर, जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाकर अपने को बिहार के सम्मान-स्वाभिमान का पहरेदार घोषित कर सकें।
इसीलिए जब काटजू ने पाकिस्तान को कश्मीर के साथ बिहार भी दे देने का मज़ाकिया ऑफर दिया, तो शॉर्टकट की सियासत में माहिर इस मुख्यमंत्री ने उसे फौरन लपक लिया। बिना काटजू के मज़ाक का निहितार्थ समझे, बिहार में जंगलराज जैसी स्थिति पर बिना दुखी हुए, बिना अपनी सरकार की विफलताओं पर शर्मिंदा हुए, बिना बिहारियों का गौरव वापस लौटाने के लिए एक भी काम किए झट से उन्होंने काटजू पर हमला बोल दिया। कहा- “क्या काटजू बिहार के माई-बाप हैं या बिहार के मालिक हैं?”
नीतीश कुमार बोले- “बिहार का गौरवशाली इतिहास है।“ लेकिन कोई नीतीश जी से पूछे कि बिहार के गौरवशाली इतिहास पर प्रश्नचिह्न कौन लगा रहा है? प्रश्नचिह्न तो बिहार के वर्तमान पर है। बिहार के वर्तमान को कलंकित करते रहकर कोई मुख्यमंत्री अगर गौरवशाली इतिहास पर भाषण दे, तो इसका क्या मतलब है? जिस वक्त पूरे देश में वर्तमान को लेकर बिहारियों की बेइज़्ज़ती और बदनामी हो रही हो, उस वक्त क्या हम इसके गौरवशाली इतिहास के पन्ने चाटते रहें?
इसलिए मेरी राय में, काटजू के बयान पर बिहार के लोग तो अपने तरीके से जवाब दे ही रहे थे। एक मुख्यमंत्री का जवाब यह होना चाहिए था कि जिन वजहों से बिहार की आलोचना होती है, सच्चे मन से उन वजहों को ख़त्म करने का प्रयास करते। बिहार में कानून-व्यवस्था के हालात दुरुस्त करते। पोसपूत अपराधियों को जेल भेजते, उन्हें सज़ा दिलवाते। बिहार के विकास के लिए कुछ काम करते। बिहार में निवेश लाने के लिए ठोस प्रयास करते। बिहार के किसानों को बाढ़ और सूखे के नुकसानों से बचाने का संकल्प लेते। बिहार में और कोई उद्योग न सही, तो कम से कम खाद्य-प्रसंस्करण उद्योगों का ही जाल बिछवा देते। जिन सरकारी स्कूलों और शिक्षा को उन्होंने ग्यारह साल में बर्बाद कर दिया, कम से कम अब तो उन्हें ठीक करने का प्रयास करते। लेकिन नीतीश कुमार यह सब नहीं करेंगे। यह सब करेंगे, तो उनकी सरकार चल नहीं पाएगी। क्योंकि बिहार में उनका अपना जनाधार है नहीं और जिनके जनाधार के सहारे वे विकलांग मुख्यमंत्री बने हुए हैं, वे उन्हें ऐसा करने नहीं देंगे।
विधानसभा चुनाव 2015 से पहले भी जब नीतीश जी छवि और जनाधार के संकट से जूझ रहे थे, तो उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की डीएनए वाली बात का बतंगड़ बना दिया। मोदी ने नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाए थे, न कि बिहारियों के डीएनए पर। फिर से नीतीश कुमार वही काम कर रहे हैं। काटजू का हमला बिहार की अकर्मण्य सरकार पर है, जिसकी वजह से जंगलराज कायम हुआ है, लेकिन नीतीश जी ऐसे जता रहे हैं, जैसे यह बिहारियों के सम्मान और स्वाभिमान पर हमला हुआ है।
इसलिए मैं सर्वश्री नीतीश कुमार जी यानी अपने आदरणीय मुख्यमंत्री को पूरी सद्भावना के साथ यह समझाना चाहता हूं कि
“नीतीश जी, बिहार काटजू के बयान से नहीं, बल्कि जंगलराज से शर्मिंदा होता है! इसलिए कुछ ऐसा सुनिश्चित कीजिए कि बिहार से जंगलराज ख़त्म हो और कोई बिहार की निंदा ही न कर सके। सिर्फ़ इसके गौरवशाली इतिहास का ही जाप मत करते रहिए, हम बिहारियों को एक गौरवशाली वर्तमान भी दीजिए। काटजू से निपटने के लिए 11 करोड़ बिहारी हैं। आप बस एक मुख्यमंत्री की तरह काम कीजिए। शुक्रिया।“