बिहार से जुड़े काटजू साहब के फेसबुक पोस्टों पर बवाल मचा हुआ है। कई लोग इसे बिहार और बिहारियों का अपमान बता रहे हैं। कुछ लोग काटजू साहब के लिए जमकर गाली-गलौज पर भी उतर आए हैं। ख़ुद काटजू साहब ने सफाई दी है कि उन्होंने जो लिखा, मज़ाक में लिखा। लेकिन मेरा मानना है कि काटजू साहब, ने मज़ाक-मज़ाक में ही बिहार के सुपर-मुख्यमंत्री और अपने दोस्त लालू यादव को आईना दिखाने की कोशिश की है।
जो लोग काटजू साहब को जानते हैं, उन्हें पता होगा कि वे नीतीश कुमार के भले ही निंदक हैं, लेकिन लालू यादव से उनकी अच्छी प्रगाढ़ता है। जब काटजू भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष थे और बिहार में जेडीयू-बीजेपी की साझा सरकार थी, तब काटजू साहब ने वहां जाकर कहा था कि बिहार में मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप लगी हुई है। उस वक्त भी परोक्ष रूप से वे लालू की तारीफ़ करने का मौका नही चूके थे। कहा था कि लालू के राज में कानून-व्यवस्था की स्थिति ज़रूर गड़बड़ थी, लेकिन प्रेस को पूरी आज़ादी थी।
बाद में ख़ुद मैंने कई बार काटजू साहब से बात और मुलाकात की। उनका एक घंटे लंबा टीवी इंटरव्यू भी किया। उसमें उन्होंने कहा था कि नीतीश का हाल नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद जैसा होगा, जबकि लालू यादव के बारे में कहा था कि उन्हें पिछली गलतियों का अहसास है और वे सुधर रहे हैं। ( इस क्लिप में 15 मिनट के बाद देखें – https://www.youtube.com/watch?v=z0nItTRNhSc )
ज़ाहिर है कि तब से अब तक बिहार के राजनीतिक हालात काफी बदल गए हैं। आज वहां कल के विरोधियों नीतीश और लालू की गठबंधन सरकार चल रही है और विरोधी लोग इसे जंगलराज पार्ट-2 की संज्ञा दे रहे हैं। ख़ासकर, बाहुबली शहाबुद्दीन की रिहाई का रास्ता प्रशस्त करने के लिए सरकार की तरफ़ से जो अकर्मण्यता दिखाई गई, उससे इस आरोप ने और ज़ोर पकड़ा है और इन आरोपों के केंद्र में नीतीश कुमार से अधिक लालू यादव को निशाने पर लिया जा रहा है।
इसलिए, मेरा मानना है कि काटजू साहब में शायद इतना साहस न हो कि वे सीधे तौर पर अपने मित्र लालू यादव पर उंगली उठाएं, लेकिन हंसी-मज़ाक की आड़ में वे इस बात की पुष्टि ज़रूर कर रहे हैं कि बिहार में फिर से जंगलराज कायम हो गया है। ज़रा उनका यह पोस्ट देखें। संता-बंता चुटकुले की आड़ में वे क्या कह रहे हैं-
Santa: Who supports terrorism?
Banta: Pakistan
Santa: Who supports Pakistan?
Banta: Bihar
Santa: How?
Banta: Pakistan got all its ideas of jungle raj from Bihar
Hari Om
(संता- आतंकवाद को कौन समर्थन देता है?
बंता- पाकिस्तान
संता- और पाकिस्तान को कौन समर्थन देता है?
बंता- बिहार
संता- कैसे?
बंता- पाकिस्तान ने जंगलराज के सारे विचार बिहार से हासिल किये हैं।
हरि ओम)
यानी मार्कण्डेय काटजू मज़ाक-मज़ाक में यहां तक कह रहे हैं कि बिहार में कानून-व्यवस्था के हालात पाकिस्तान जैसे हो गए हैं। फिर जो लोग इसे बिहार और बिहारियों पर टिप्पणी मानकर क्रोध जता रहे हैं, वे यह क्यों न मानें कि उनकी यह टिप्पणी बिहार के मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व और ख़ुद अपने मित्र लालू यादव पर अधिक है। बिहार में जंगलराज है, यह बात तो ख़ुद बिहारी भी कहते हैं, लेकिन यही बात जस्टिस काटजू ने कह दी, तो इतना बुरा क्यों लग रहा है?
मेरा ख्याल है कि इस एक पोस्ट से यह अच्छी तरह समझ में आ जाता है कि बिहार को लेकर अपने तमाम पोस्टों में उनकी मंशा क्या थी। अब 25 सितंबर को किया गया उनका पहला पोस्ट देखें, जिससे विवाद शुरू हुआ-
Pakistanis, let us end our dispute once and for all. We offer you Kashmir, but on the condition you also take Bihar. It is a package deal. You have to take the whole package or none at all. Either you take both Kashmir and Bihar, or nothing. We will not give you Kashmir alone.
Deal?
P.S.
Atal Bihari Vajpayee had offered this deal to Musharraf at the Agra Summit, but he stupidly rejected it. Now the offer is coming again. Mat chook ai Chauhan
(पाकिस्तान, आओ, हम अपने सारे विवादों को ख़त्म करें। हम तुम्हें कश्मीर दे देंगे, लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें बिहार भी लेना होगा। यह एक पैकेज डील है। या तो तुम्हें पूरा पैकेज स्वीकार करना होगा या फिर कुछ भी नहीं। या तो तुम कश्मीर और बिहार दोनों लो, या कुछ भी नहीं। हम तुम्हें अकेले कश्मीर नहीं देंगे।
डील?
पोस्ट स्क्रिप्ट- अटल बिहारी वाजपेयी ने आगरा समिट के दौरान मुशर्रफ के सामने यह डील रखी थी, लेकिन उसने मूर्खतापूर्वक इसे अस्वीकार कर दिया। एक बार फिर से यह ऑफर आ रहा है। मत चूको चौहान।)
यह पोस्ट सतही तौर पर विशुद्ध रूप से एक मज़ाक है, पर गहराई से देखने पर इसमें पाकिस्तान के हसीन सपनों और मुशर्रफ़ की मूर्खता का मखौल उड़ाया गया है। बातों-बातों में बिहार की ख़राब कानून-व्यवस्था पर भी चुटकी ली गई है। इस मज़ाक में गड़बड़ी इतनी है कि अपनी बात उन्हें अपने ही हवाले से कहनी चाहिए, किसी और का कंधा इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। इसमें वे अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ले रहे हैं, जबकि उन्हें पता है कि अटल जी अब अपनी सफाई देने की स्थिति में नहीं हैं।
एक अन्य पोस्ट में भी वे बेमतलब फिराक गोरखपुरी को लपेट रहे हैं-
Once Firaq Gorakhpuri, my English teacher in Allahabad University, said to me “Hindustan ko khatra Pakistan se nahin hai, Bihar se hai”.
I still don’t know what he meant.
(एक बार इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मेरे अंग्रेज़ी शिक्षक फिराक गोरखपुरी ने मुझसे कहा- “हिन्दुस्तान को ख़तरा पाकिस्तान से नहीं है, बिहार से है।” मुझे अब तक नहीं पता कि उनका मतलब क्या था।)
काटजू ने और भी कई पोस्ट किए हैं बिहार को लेकर। देखिए-
What is wrong with Biharis? Cant they take a joke?
(बिहारियों के साथ क्या गड़बड़ी है? क्या वे एक मज़ाक भी नहीं सह सकते?)
और
Bhaj man Biharayan, Biharayan, Biharayan
(भज मन बिहारियां बिहारियां बिहारियां)
और
Mr. K.C. Tyagi, General Secretary of JDU, has said I should be charged for sedition regarding my statements on Bihar. I have a better suggestion. I should be charged under the Lunatics Act. Hari Om
(श्री केसी त्यागी, जेडीयू के महासचिव ने कहा है कि बिहार को लेकर मेरी टिप्पणी के चलते मुझेपर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। मेरे पास इससे भी बेहतर सुझाव है। मुझपर पागल लोगों के लिए बने कानून की धाराएं लगाई जाए। हरि ओम।)
यानी काटजू अपनी आलोचना को जितना लाइटली लेते हैं, अन्य लोग उनके हंसी-मज़ाक को उतना ही सीरियसली ले लेते हैं। आपको याद होगा कि काटजू ने एक बार पहले भी कहा था कि इस देश के 90 फीसदी लोग बेवकूफ हैं। यहां 2000 रुपये में दंगा भड़काया जा सकता है। किसी समुदाय के बारे में कुछ बोल दो या शरारतपूर्ण मंशा से किसी धार्मिक स्थल को ज़रा सा नुकसान पहुंचा दो, दंगा भड़क जाएगा। लोग यह भी नहीं सोचेंगे कि इसके पीछे कोई शरारत भी हो सकती है।
काटजू साहब, अपनी इस बात को बार-बार टेस्ट करते हैं और मुझे लगता है कि अपने प्रयोग में वे बार-बार सफल भी होते हैं। इस बार भी वे सफल रहे। लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि अचानक बिहार को लेकर इतनी सारी टिप्पणियों के पीछे क्या बात हो सकती है। जिस वक्त शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार और न्याय-व्यवस्था पर लगातार उंगलियां उठाई जा रही हों, वैसे वक्त में एक पूर्व जस्टिस ने अगर अपना रोष प्रकट करने का मज़ाकिया लहजा ढूंढ़ा, तो इतना बवाल क्यों? हरि ओम।